Saturday, March 05, 2011

जिंदगी....

देरतक उबाली है... कपमें डाली है
कड़वी है नसीबसी.... ये काफी गाढ़ी काली है...
चम्मचभर चीनी हो... इतनीसी मर्ज़ी है
सौ ग्राम जिंदगी ये संभालके खर्ची है.....

खरी है, खोटी है... रोने को छोटी है...
धागे से खुशिओं को सिलती है... दर्जी है..
सौ ग्राम जिंदगी ये संभालके खर्ची है.....